Wednesday, June 12, 2013

धर्म जोड़ता है, धर्मान्धता बाँटती है

भूल गए वो पल, जब पहली बार तुम एकजुट हुए थे,
ये समझ कर की तुम सब एक जैसे हो
दो पेरों, दो हांथों वाले जानवर, बन्दरों से ज्यादा समझदार
जब तुम सच्चे थे, बिलकुल नग्न 
हाँ तब नग्न रहना तुम्हारा स्वभाव था
जब संकोच और सभ्यता जैसी भ्रामिक शब्दों का निर्माण नहीं हुआ था
तुम्हें भूल चुके हो अँधेरे में चोकन्ना रहना
तुम भूल चुके हो वो मुकाबले, जो तुमने लड़े थे आदमखोर जंगली जानवरों से
जिनके विरुद्ध अकेले जितना तुम्हारे बल और बुद्धि दोनों के परे था

हाँ प्रकृति ने ही तुम्हे सिखाया मांसों को झुलसा कर खाना  
हाँ तुमने सीख तो ली पत्थरों और सुखी लाकाडियों से आग जलाना 
मगर तुमने सूर्य को ईश्वर मान लिया, 
और फिर खुद ही जला कर साफ़ करने लगे जंगल
पर जंगल तुम्हारे भीतर घुस आया
तुमने बसना शुरू कर दिया और छोड़ दी खानाबदोशी, 
तुम्हे रफ़्तार याद रही परन्तु चलना भूलने लग गए
तुमने धरती को पूजा, नदियों को पूजा, हवाओं को पूजा, आसमान को पूजा
और रचडाला सारा बढ़,ब्रहमांड, इन्ही पाँच माहाभूतों से

भूल गए जब तुम ने पहली बार बदलों की गर्जन से डर किसे पुकारा था 
भूल गए वो दिन जब भूख से बिलखते बच्चों को देख,
पहली बार धरती को माँ सम्बोधित कह, फसल उगाये थे
हां तुम भूल गए, जब तुम जान पाए थे, की तुम कर सकते हो आवास का निर्माण पंक्षियों की तरह 
पर तुमने जंगलों से जीतनी दूरी बढाई, तुम्हारे भीतर जंगल उतना ही सघन होता गया 
तुम जंगल जलाते गए, और जंगलों के साथ ही जलती गयी इंसानियत 
फसलों के साथ तुमने उगाये जाती-धर्म नाम के फ़ासलों को भी 
तुमने चालाकी से शर्म का इस्तेमाल किया और कपड़ों के भीतर बेशर्म होते चले गए

हाँ तुम भूल गए
वो सारे अद्भुतपूर्व क्षण जबतक तुमने ईश्वर का सृजन नहीं किया था

Thursday, May 16, 2013

Analogy between Humans & Rocks

Here is a Good Analogy between Humans & Rocks॰॰॰isn't it॰॰?
¤ ¤ ¤
एक बात कहूँ॰॰? ॰ ॰ ॰ शायद पता भी हो॰॰॰
इन्सानों और पत्थरों में ज़्यादा अन्तर नहीं है
इन्सान भी जन्म के आधार पर
जाती-धर्मो में बाँट दिये जाते हैं
और पत्थर भी, जन्म के आधार
पर भिन्न वर्गों में बाँट दिये जाते हैं
पत्थरों की तरह,
इन्सान भी भुरभुरे और कठोर होते हैं
दोनों को झेलनी होती है मार
वक़्त के साथ मोसमों के बदलाव की
कुछ बदल जाते हैं॰॰॰ इस बदलते गिर्द-पेश में
और कुछ जमे रहते हैं देर तलक॰॰॰
पर नियति के आगे दोनों ही बेवश हैं
चाहे नदियों के संग बह चले या फिर,
नदियों को दिशा देने की ताकत रखता हो
पर अंत दोनों का है॰॰॰
एक दिन दोनों को ही मिल जाना है, मिट्टी में
¤ ¤ ¤

Saturday, July 7, 2012

सुबह-सुबह जब आँखें खुलती-बंद होती रही...
तो चल पड़ा था एक कारवां... पीछे की और
ध्वनि की गति से, बढ़ने लगा था समय...
जहाँ मैं, बुन रहा था जालें... स्वयम के लिए
छिपकलियाँ फेर रही थी अपनी लम्बी जुबान
तिलचट्टों ने भी आमंत्रित कर रखा था, अपने बंधू-बांधवों को
मकड़े सुस्त पड़ गये, छोड़ रखा था जालों का निर्माण कार्य
चूहों ने बना रखी है प्रवास की यौजनाएं
ओह! हे ईश्वर, ये मेरे साथी हैं,
जिनके साथ बिताये हैं मैंने, जीवन का हर क्षण हर पल
सोच की शक्ति ने पकड़ रखी है वक़्त की नब्ज
और मुझे भयभीत कर रही है, इसकी छटफटाहट
इधर चमगादड़ों ने भी... पूरी तैयारी कर रखी है... मेरे घर पे कब्जा ज़माने की
मैं फंसा हूँ, स्वयम के निर्मित... जालों में
वक़्त की नब्ज छोड़ दी है मैंने... वो अब आगे बढ़ रहा है...
पर इतंजार अभी खत्म नहीं हुआ... हम अभी जिन्दा हैं मेरे दोस्त
- रणधीर (uncover)
हा हा :-) :-) :-)
हाँ माँ !
मैं जनता हूँ... मैं प्रिय हूँ तुम्हारा 
और मेरी भी तो तुम प्रिय हो... 
मैं देखा है हर बार तुम्हें... मेरे दर्द पर फुट पड़ते हुये 
पर हर बार में भी फूट पड़ता था माँ, 
जब स्कूल जाते वक़्त मेरे साथ मेरी बहने नहीं होती थी
और उस वक़्त भी, जब तुमने मुझे... बहनो से छिपा कर पेडे दिये थे 
माँ, अपनी गलतियों पर भी बहनों को मार पड़ने पर में यूंही नहीं रोता था 
माँ मुझे तब भी अच्छ नहीं लगता था, 
जब मेरी बहने... मेरे छोटे हो चुके कपड़े पहनती थी...
और माँ तब तो सुबक-सुबक के कई मर जाता था... 
सर्दी में बहनो की चादर तुम मुझ पर डाल जाती थी 
माँ अब आगे नहीं कह पाऊँगा... रुँध गया है गला मेरा... 

{भारत} [आज भाई नहीं हूँ, बेटा हूँ]

Tuesday, June 26, 2012

दोस्तों में छुपे बैठे थे कई दुश्मन हमारे,
पका रह थे खिचिड़ी, अति गाढ़े वाले...
खुदा करता है, सब के कर्मों का इन्साफ
आज खुद फंसे हैं, मेरे लिए जाल बुनने वाले...
सबको अपना कहने का सुकून, भरभरा जाता है
जब अपना सपना मनी-मनी, कोई तोड़ जाता है
मनोरंजन के लिए सिर्फ ही नहीं उतारे जाते कपडे
इन्ही से किसी के कुककर्मो को छिपाया जाता है

Saturday, June 23, 2012

आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों

आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों
♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

सच कहती है... वो
बादलों के घिरने का उन्माद
उसके बूँद बन बरसने से ज्यादा
उतेज्जना भरा होता है...
वो यह भी कहती है...
दुनिया में सबसे ज्यादा मज़ा
लोगों द्वारा घोषित
सबसे निष्कृत कार्य करने में है...
मैं भी मानता हूँ
क्रांति नियमों के पालन से नहीं
वरण नमक बनाने से आती है
देश का भविष्य
स्कूल-कॉलेजों में उपस्थिति से नहीं
बल्कि एकता की हुंकार लिए
सड़कों पर,
रोड़ों को ठोकर मारते हुए
शहीद होने में है

प्रेम संकुचन है
दायरों का
विचारों का
तो प्रेम एक उड़ान भी है
सपनो का
विचारों का
प्रेम नहीं तोड़ पता
रेशम का पतला तागा भी
तो भर देता है
जूनून और होसला भी

देश का भला प्रेम में ही है
आपस में प्रेम करो
देश से प्रेम करो
नफरत
धोखा और बदले भड़काती है
और प्रेम
त्याग और खुशियाँ फैलाती है

♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
{रणधीर भारत }